- Share Market Terminology in Hindi
- 01) 52-Week High & 52-Week Low
- 02) Ask Price
- 03) ASM List
- 04) Benchmark
- 05) Bid Price
- 06) Bluechip
- 07) Bonds
- 08) Bonus Share
- 09) Broker
- 10) Bull & Bear
- 11) Circuit
- 12) Closing Price
- 13) CMP
- 14) CNC or Delivery Order
- 15) Commodity Market
- 16) Contract Note
- 17) Corporate Action
- 18) Correction
- 19) Debenture
- 20) Delivery
- 21) DII
- 22) Exit Load
- 23) Face Value
- 24) FII
- 25) Forex Market
- 26) GSM List
- 27) Holding Company
- 28) Intrinsic Value
- 29) Limit Order
- 30) Liquidity
- 31) Lot
- 32) LTP
- 33) Margin
- 34) Market Cap
- 35) Market Order
- 36) MIS or Intraday Order
- 37) Muhurat Trading
- 38) Multibagger
- 39) Multicap Funds
- 40) Penny Stock
- 41) Pledged Share
- 42) Portfolio
- 43) Price Band
- 44) Promoter Holding
- 45) Rally
- 46) Revenue
- 47) Reverse Stock Split
- 48) Right Issue
- 49) Settlement Cycle
- 50) SGX Nifty
- 51) Share Buyback
- 52) Short Selling
- 53) Spread
- 54) Square Off
- 55) Stock Split
- 56) Stop Loss
- 57) Trend
- 58) Value Investing
- 59) Volatility
- 60) Volume
- FAQ –
Share Market Terminology in Hindi
01) 52-Week High & 52-Week Low
पिछले 52 हफ्तों के भीतर किसी स्टॉक की high price को 52 week high कहा जाता हैं।
पिछले 52 सप्ताह के भीतर किसी स्टॉक की low price को 52 week low कहा जाता हैं।
02) Ask Price
Ask Price किसी शेयर की वह Price होती है | जिस पर कोई भी Seller उस शेयर को बेचने के लिए तैयार बैठा हो।
03) ASM List
ASM का फुल फॉर्म Additional Surveillance Measures होता है | ASM में उन स्टॉक को रखा जाता है | जिसमें Sebi को लग रहा है कि स्टॉक के प्राइस के साथ मैनिपुलेशन हो रही है |
ध्यान दें – अगर आप एक इन्वेस्टर है | तो ASM लिस्ट में ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए |
04) Benchmark
Benchmark एक स्टैंडर्ड होता है | जिसके against कोई कंपनी अपनी परफॉर्मेंस को measure / check करती है |
05) Bid Price
Bid Price किसी शेयर की वह प्राइस होती है | जिस पर कोई भी Buyer उस शेयर को खरीदने के लिए तैयार बैठा हो। जैसे की आपको HDFC बैंक का एक शेयर ₹600 में खरीदना हैं और आप इस प्राइस पर अपना आर्डर प्लेस करते हैं। आपकी ये ₹600 की प्राइस बिड प्राइस कहलाएगी।
06) Bluechip
ब्लू चिप शब्द का आविष्कार 1923 में, डाओ जोन्स में काम करने वाले ओलिवर गिंगोल्ड ने किया था।
आइये इसे एक example से समझते है –
जैसे पोकर गेम उस गेम में एक ब्लू कलर के चिप्स होते है जिसकी वैल्यू सबसे ज्यादा होती है, बिलकुल उसी तरह शेयर मार्केट में भी जिन कंपनियों की कीमत सबसे ज्यादा होती है या जो आपने सेक्टर की लीडर होती है | उन्हे ब्लू चिप कंपनी कहते है।
दूसरे शब्दों में कहें तो Blue Chip Stock उन कंपनी के स्टॉक को कहते हैं | जो सालों से बिजनेस में है, प्रतिष्ठित हैं, फाइनेंशली स्ट्रांग है, सालों से कंसिस्टेंट परफॉर्मेंस दिखा रही है और जिसका बहुत अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है |
Blue Chip Stock को कैसे पहचाने?
Blue Chip Stock को पहचानने के लिए | हमें कुछ बातों को ध्यान में रखना होता है | जैसे –
Blue Chip Stock का market cap बहुत बड़ा होता है |
Blue Chip Stock में बहुत कम volatility होती है |
Blue Chip Stock में liquidity ज्यादा होती है | यानी Blue Chip Stock मैं बहुत सारे बायर और सेलर अवेलेबल होते हैं |
ज्यादातर Blue Chip Stock इन्वेस्टर्स को डिविडेंड देते हैं |
Blue Chip Stock में रिस्क कम होता है |
ध्यान दें – जो कंपनी आज ब्लू चिप स्टॉक है | वह हमेशा रहे ऐसा जरूरी नहीं |
07) Bonds
Bond एक debt instumental है | जिससे कोई कंपनी या गवर्नमेंट पब्लिक से लोन लेती है | पब्लिक के लोन देने पर इंटरेस्ट मिलता है | जिसे उस बांड का coupon rate कहा जाता है | हर बांड एक फिक्स टाइम पीरियड के लिए होता है | जिसे उस बांड का मैच्योरिटी पीरियड कहते हैं | एक बांड पर इंटरेस्ट पेमेंट monthly, quaterly, half-yearly या annually हो सकता है | जो हमें बांड के मेच्योरिटी पीरियड तक मिलता रहता है, और मेच्योरिटी पीरियड एंड होने के बाद हमें अपना प्रिंसिपल अमाउंट वापस मिल जाता है |
उदाहरण के लिए | मान लीजिए – आपने अगर एक ₹5,00,000 का गवर्नमेंट बांड लिया है | जिसकी मैच्योरिटी 5 साल है, और coupon rate 8% है जोकि payable quaterly है | तो इसका मतलब – ₹5,00,000 का 8% ₹40,000 का इंटरेस्ट मिलेगा और यह ₹40,000 हमें quaterly हर 3 महीने पर ₹10,000 करके मिलेंगे और 5 साल बाद आपको आपके ₹5,00,000 वापस मिल जाएंगे |
08) Bonus Share
Bonus Share एक तरह का स्टॉक डिविडेंड है | जो कंपनी अपने शेयर होल्डर्स को देती है | इसमें कंपनी डिविडेंड की तरह पैसे नहीं बल्कि शेयर देती है | बोनस शेयर इस आधार पर मुफ्त में दिए जाते हैं कि उनके पास कंपनी के कितने शेयर मौजूद हैं |
ध्यान दें – जब एक कंपनी बोनस शेयर अनाउंस करती है | तो वह ex-bonus date और record date दोनों अनाउंस करती है |
Ex-Bonus date Record date के 2 दिन पहले का होता है | मतलब अगर हमें उस कंपनी के बोनस शेयर चाहिए तो हमें कंपनी के शेयर को ex-bonus date के 1 दिन पहले तक buy करना होगा | कंपनी बोनस शेयर को रेश्यो में बताती है |
उदाहरण – एक कंपनी ने 3:1 के रेशियो में बोनस शेयर डिक्लेअर किया है | तो इसका मतलब है कि रिकॉर्ड डेट पर जिन शेरहोल्डर्स के पास कंपनी के शेयर होंगे | उन्हें हर एक शेयर पर कंपनी फ्री में 3 शेयर देगी |
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि बोनस शेयर के मिलने से हमारे टोटल इन्वेस्टमेंट में कोई चेंज नहीं होता है बल्कि हमारे शेयर की प्राइस उसी रेश्यो में कम हो जाती है |
उदाहरण के लिए | मान लीजिए – एक XYZ लिमिटेड नाम की कंपनी है | जिसने अलग-अलग समय पर 1:1, 3:2 और 5:1 का Bonus Issue किया था | जैसा हम table में देख सकते है |
Bonus Issue | Before Bonus Total no. of Shares | Before Bonus Share Price | Total Investments | After Bonus Total no. of Shares | After Bonus Share Price | Total Investments |
1:1 | 100 | ₹550 | ₹55,000 | 200 | ₹275 | ₹55,000 |
3:2 | 100 | ₹550 | ₹55,000 | 150 | ₹366.667 | ₹55,000 |
5:1 | 100 | ₹550 | ₹55,000 | 500 | ₹110 | ₹55,000 |
09) Broker
ब्रोकर Buyers और Sellers को मिलाने का काम करता हैं। इस प्रकार एक स्टॉक ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज और इन्वेस्टर के मध्य एक मध्यस्थ का काम करता हैं।
Broker के Platform का उपयोग करके आप शेयर्स खरीद और बेच सकते हैं।
10) Bull & Bear
Bull का मतलब तेजी होना है | उदाहरण – अभी मार्केट bulish है, मतलब अभी मर्केट में तेजी आयी है |
Bear का मतलब मंदी होना है | उदाहरण – अभी मार्केट bearish है, मतलब अभी मर्केट में मंदी आयी है |
11) Circuit
Circuit limit का मतलब होता है | एक स्टॉक की प्राइस एक ही दिन में एक लिमिट तक ही बढ़ या घट सकती है, और जब एक स्टॉक की प्राइस अपने सर्किट लिमिट तक आती है | तो फिर उस स्टॉक पर ट्रेडिंग उस पूरे दिन के लिए बंद हो जाती है |
ध्यान दें – India में circuit limit 2% , 5% , 10%, और 20% की होती है, और यह एक्सचेंज डिसाइड करती है कि किस स्टॉक पर कितनी सर्किट लिमिट रहेगी | साथ ही अगर एक्सचेंज चाहे तो 1 दिन में कितनी बार भी सर्किट लिमिट बदल सकती हैं |
आइए इसे उदाहरण से समझते हैं | मान लीजिए – अगर किसी स्टॉक की सर्किट लिमिट 2% है | तो इसका मतलब है कि उस स्टॉक की प्राइस 1 दिन में अपने पिछले दिन के क्लोजिंग प्राइस से 2% ऊपर या 2% नीचे तक ही जा सकती है |
Circuit Limit दो type की होती है | आइए इसे उदाहरण से समझते हैं | मान लीजिए – XYZ नाम का एक स्टॉक है | जिसकी कल क्लोजिंग मार्केट प्राइस ₹100 थी और अगर उस पर 2% की सर्किट लिमिट लगी है | (₹100 का 2% यानी कि ₹2 होता है|)
Upper Circuit | Lower Circuit |
तो इस तरह अगर आज XYZ स्टॉक का प्राइस बढ़कर ₹100 से ₹102 हो जाएगा तो ट्रेडिंग बंद हो जाएगी और हम कहेंगे कि अपर सर्किट लगी है | | वही अगर XYZ स्टॉक का प्राइस घटकर ₹100 से ₹98 हो जाएगा | तो भी ट्रेडिंग बंद हो जाएगी और हम कहेंगे कि लोअर सर्किट लगी है | |
किसी स्टॉक में अगर अपर सर्किट लगी है | तो इसका मतलब है कि buyers बहुत ज्यादा है और seller कम है | | वही अगर किसी स्टॉक में लोअर सर्किट लगी है | तो इसका मतलब है कि seller बहुत ज्यादा है और buyers कम है | |
12) Closing Price
वह कीमत जो मार्केट के क्लोज होने पर किसी शेयर की रहती है |
13) CMP
CMP का फुल फॉर्म Current Market Price होता है | जिसका आशय होता है – किसी स्टॉक के करंट प्राइस से |
14) CNC or Delivery Order
CNC की फुल फॉर्म Cash And Carry होता हैं। CNC या डिलीवरी के सौदें तब किये जाते हैं जब आप शेयर्स की वास्तविक डिलीवरी उठाते हैं।
लॉन्ग-टर्म के लिए शेयर होल्ड करने के लिए CNC या डिलीवरी विकल्प का चुनाव किया जाता हैं।
15) Commodity Market
ये वो मार्केट होता हैं | जहां कमोडिटी जैसे की Gold, Silver, Crudeoil आदि को ख़रीदा और बेचा जाता हैं।
16) Contract Note
जब मार्केट से शेयर की खरीदी-बिक्री होती हैं तब स्टॉक ब्रोकर अपने ग्राहकों को कॉन्ट्रैक्ट नोट (contract note) भेजता हैं। कॉन्ट्रैक्ट नोट में शेयर के लेनदेन से संबंधी रेट, ब्रोकरेज, टैक्स आदि जानकारी होती हैं।
17) Corporate Action
जब किसी कंपनी द्वारा कंपनी से सम्बंधित कोई निर्णय लिया जाता हैं | तो इसे कॉर्पोरेट एक्शन कहा जाता हैं | जैसे की – Bonus Issue, Right Issue, Dividend, Stock Split और Share Buyback आदि |
18) Correction
Correction का मतलब किसी भी शेयर का प्राइस नीचे आना और नीचे आने के बाद फिर से वापस उसका ऊपर जाना |
19) Debenture
डिबेंचर भी बॉन्ड्स की तरह होते हैं जिनके बदले कंपनियों द्वारा Market से पैसे उठाये जाते हैं। ये Bonds जितने सुरक्षित नहीं होते हैं।
20) Delivery
जब आप 1 दिन से ज्यादा टाइम पीरियड के लिए शेयर को होल्ड करते हैं | तो उसे डिलीवरी कहते हैं |
21) DII
जो Indian Institutional Investor इंडियन फाइनेंशियल मार्केट में इन्वेस्ट करते हैं | उन्हें Domestic Institutional Investors कहते हैं |
22) Exit Load
कुछ म्यूचुअल फंड में जब हम इन्वेस्ट करते हैं | तो हमें अपना इन्वेस्टमेंट एक फिक्स टाइम तक रखना पड़ता है, और अगर हम अपने इन्वेस्टमेंट को इस फिक्स टाइम से पहले withdraw करते हैं | तो हमें सेविंग वैल्यू पर एक पेनाल्टी फीस देनी होती है | इस पेनाल्टी फीस को ही exit load कहा जाता है, और यह जनरली 0.5% से 2% तक होता है |
उदाहरण के लिए – अगर हम एक म्यूच्यूअल फंड में इन्वेस्ट करते हैं | जिसका exit load 1% है, और टाइम पीरियड 1 साल के लिए है | तो इसका मतलब है कि इन्वेस्टमेंट करने के दिन से लेकर अगले 1 साल तक के बीच अगर हम इस म्युचुअल फंड को सेल कर के पैसे withdraw करना चाहे तो हमें अपने सेविंग वैल्यू का 1% as a exit load देना होगा |
ध्यान दें – किसी भी म्युचुअल फंड में इन्वेस्ट करने से पहले उसका exit load जरूर देखना चाहिए |
23) Face Value
जब कंपनी legaly start होती है | तो उस वक्त कंपनी शेयर यीशु करती है और कंपनी जिस प्राइस पर शेयर को यीशु करती है | उस प्राइस को ही हम उस कंपनी की फेस वैल्यू कहते हैं |
शुरुआती शेयर mainly कंपनी के फाउंडर / प्रमोटर के पास होते हैं | जिसे वह बाद में IPO में सेल कर के पैसे उठाते हैं |
उदाहरण के लिए | मान लीजिए – राजू ने एक कंपनी स्टार्ट की और पूरी कंपनी को एक करोड़ शेयर में डिवाइड किया | क्योंकि राजू ने कंपनी के हर शेयर की प्राइस को ₹10 रखा है तो हम कहेंगे की XYZ कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू ₹10 है |
ध्यान देने वाली बातें –
1) ज्यादातर कंपनी अपने फेस वैल्यू का ₹10 ही रखती है | क्योंकि इससे कैलकुलेशन करने में आसानी रहती है |
2) IPO के टाइम शेयर की फेस वैल्यू ₹10 से ज्यादा भी हो सकती है और शेयर की प्राइस फेस वैल्यू से जितनी ज्यादा रहती है | उसे हम उस शेयर का share premium कहते हैं |
उदाहरण के लिए | जब TATA Steel Jan 19, 2011 में अपना IPO लाया था | तो उसकी फेस वैल्यू ₹10 थी और IPO की यीशु प्राइस यानी IPO के समय शेयर की प्राइस ₹610 थी | तो इसका मतलब है कि TATA Steel ने अपने शेयर के IPO में ₹600 के शेयर प्रीमियर पर सेल किया |
24) FII
FII में दूसरे देश के इन्वेस्टर्स इंडियन फाइनेंशियल मार्केट में इन्वेस्ट करते हैं | उन्हें Foreign Institutional Investors कहते हैं |
ध्यान दें – DII के मुकाबले FII ज्यादा कैपिटल इन्वेस्ट करते हैं |
25) Forex Market
Forex Market वह मार्केट होता हैं जहां Currency (जैसे की रुपये, डॉलर, पाउंड, यूरो) को ख़रीदा और बेचा जाता हैं।
26) GSM List
GSM की शुरुआत 2017 से हुई है | जिस का फुल फॉर्म Graded Survelliance Measures होता है | GSM लिस्ट में उन स्टॉक को रखा जाता है | जो पेनी स्टॉक्स है या Illiquid stock है |
ध्यान दें – GSM लिस्ट में उन्हीं Penney stocks को रखा जाता है | जिनमें Pump & Dump ज्यादा होता है |
GSM लिस्ट में शामिल हुए स्टॉक को investor as well as traders हमें avoid करना चाहिए |
27) Holding Company
Holding Company एक ऐसी कंपनी होती है | जो ना कोई प्रोडक्ट बनाती है, और ना ही कोई सर्विस देती है | होल्डिंग कंपनी का काम होता है | दूसरे कंपनी में इन्वेस्ट करना और एक कॉर्पोरेट ग्रुप बनाना |
जैसे – इंडिया में Bajaj Holding एक होल्डिंग कंपनी है, और इन कंपनी के होल्डिंग है (Bajaj Auto, Bajaj Auto Holdings, Bajaj Finserv, Maharashtra Scooters) इन चारों कंपनी को हम बजाज होल्डिंग्स की सब्सिडियरी कंपनी कहेंगे |
28) Intrinsic Value
Intrinsic Value किसी स्टॉक का सही दाम क्या है? यह जानने के लिए हम Intrinsic वैल्यू का यूज करते हैं | जिससे हमें यह पता चल सके कि वह स्टॉक अपने करंट मार्केट प्राइस से ओवरवैल्यूड है या अंडरवैल्यूड है | Intrinsic वैल्यू को हम दूसरे नामों से भी जानते हैं | जैसे – Fair Value, Actual Value और Real Value.
Intrinsic value को कैसे कैलकुलेट करें?
वैसे तो Intrinsic value निकलने के लिए बहुत से तरीके है | पर आज हम यहाँ “THE INTELLIGENT INVESTOR” book में दिए गए तरीके से Intrinsic value को निकलेंगे |
जिसको कैलकुलेट करने का फार्मूला E*(8.5 + 2g)*4.4 / Y होता है |
जिसमें | E = Earning Per Share, g=growth rate, Y = Average AAA corporate bond yield (India का)
Example – आइए Reliance का intrinsic value कैलकुलेट करके देखते हैं |
63.96*(8.5 + 2*72.47) * 4.4 / 7.293 = 631.10
जोकि रिलायंस के करंट मार्केट प्राइस से कम है | तो इस तरह हम कह सकते हैं कि रिलायंस का शेयर प्राइस फिलहाल ओवरवैल्यूड है |
ध्यान देने वाली बातें –
1) सिर्फ intrinsic value को देखकर हमें इन वेस्ट नहीं करना चाहिए | क्योंकि ना ही यह कंपनी के debt, profit margin, brand equity, free cash flow, company के management और promoters के बारे में बताता है |
2) सबसे पहले स्टॉक या कंपनी कि अच्छे से फंडामेंटल एनालिसिस करें | फिर उसकी intrinsic वैल्यू को निकाले |
29) Limit Order
लिमिट ऑर्डर एक ऐसा ऑर्डर होता हैं, जिसमें Buy या Sell का ऑर्डर एक निश्चित प्राइस पर लगाया जाता हैं। जब ये प्राइस हिट होती हैं तब आपका ऑर्डर execute हो जाता हैं।
30) Liquidity
Liquidity का हिंदी मतलब “सरलता” होता है | LIquidity का स्टॉक मर्केट में मतलब आसानी से किसी स्टॉक का पैसो में कन्वर्ट हो जाना या जिस स्टॉक के बयर और सेलर आसानी से मिल जाये | उन स्टॉक को हम liquid stock कहते है |
31) Lot
Lot एक mimimum quantity होती है | जो आप bulk में buy करते है |
32) LTP
LTP जिस का फुल फॉर्म Last Trade/Traded Price होता है | LTP वह कीमत होती है | जिस पर किसी बायर और सेलर के बीच फाइनल ट्रेड होता है |
33) Margin
मार्जिन एक उधार की तरह होता हैं जो स्टॉक ब्रोकर के द्वारा प्रोवाइड करवाया जाता हैं। मार्जिन का उपयोग करके शेयर को ख़रीदा और बेचा जाता हैं।
उदाहरण के लिए – आपके पास ₹600 हैं और आपका ब्रोकर आपको इस पर कुल ₹1,000 पर ट्रेडिंग करने की अनुमति देता हैं तो यहाँ ऊपर वाले ₹400 मार्जिन के होंगे।
34) Market Cap
Market Cap का फुल फॉर्म Market Capitalization होता है | जिससे यह पता चलता है कि एक कंपनी की पूरी कीमत कितनी है या हमें अभी उस कंपनी को खरीदना हो तो हमें कितने रुपए देने होंगे |
Market Cap का फार्मूला Current Share Price * Total no. of Shares होता है |
Example – मान लीजिए XYZ कंपनी का शेयर प्राइस ₹100 है और इस कंपनी के टोटल शेयर 20 करोड़ है | तो XYZ का market cap ₹2000 करोड़ होगा |
तो इसका मतलब हमें XYZ कंपनी को खरीदने के लिए ₹2000 करोड़ देना होगा |
Market Cap के आधार पर कंपनी को तीन कैटेगरी में बांटा गया है |
i) Large Cap ii) Mid Cap iii) Small Cap
35) Market Order
मार्केट ऑर्डर में आप जो भी आर्डर लगाते हैं | वो तुरंत Current Market Price पर एक्सीक्यूट हो जाता हैं।
36) MIS or Intraday Order
MIS का मतलब Margin Intraday Square-Off होता हैं। जब आप किसी शेयर में किसी एक ट्रेडिंग में होने वाली उठा-पटक का फ़ायदा उठाना चाहते हैं तो आपको MIS या इंट्राडे ऑर्डर का चुनाव करना होता हैं।
इस प्रकार के ऑर्डर में आपको शेयर्स की वास्तविक डिलीवरी नहीं मिलती।
37) Muhurat Trading
Muhurat Trading ट्रेडिंग का एक स्पेशल सेशन है, जो हिंदू फेस्टिवल दिवाली के दौरान इंडियन स्टॉक एक्सचेंज में होता है | यह ट्रेडिंग का 1 दिन है, जो शाम को आयोजित किया जाता है | आमतौर पर 1 घंटे के लिए, और इस 1 घंटे के टाइम को शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने के लिए बेहद ही शुभ समय माना जाता है| वही मुहूर्त ट्रेडिंग का डेट और टाइम हर साल बदलता रहता है, और ऐसा माना जाता है कि इस समय के दौरान ट्रेडिंग करना आने वाले साल के लिए गुड लक और प्रोस्पेरिटी लाता है |
मुहूर्त ट्रेडिंग का इतिहास – BSE ने साल 1957 से मुहूर्त ट्रेडिंग की शुरुआत की थी | वही NSE ने साल 1992 के बाद से मुहूर्त ट्रेडिंग की शुरुआत की थी |
38) Multibagger
जब भी कोई शेयर बहुत ही अच्छा प्रॉफिट कमा कर देता हैं और वह शेयर आपके पैसे को बहुत गुना कर देता हैं तो उस प्रॉफिट को Multibagger Return और स्टॉक को Multibagger Stock कहा जाता हैं।
39) Multicap Funds
ऐसे म्यूच्यूअल फंड होते हैं | जिनसे हर तरह के मार्केट कैप वाले स्टॉक में इन्वेस्ट कर सकते हैं | चाहे फिर वह लार्ज कैप, मिड कैप या फिर स्मॉल कैप हो |
ध्यान दें – मल्टी कैप फंड में रिस्क कम होता है और जनरली रिटर्न अच्छा मिलता है |
40) Penny Stock
आमतौर पर पैनी स्टॉक वे स्टॉक होते हैं जिनकी कीमत ₹10 से कम होती हैं। इस प्रकार के शेयर्स में हाई रिस्क के साथ हाई रिटर्न देने की क्षमता होती हैं।
हम उन कंपनी के stocks को कहते हैं | जिनका मार्केट कैप और स्टॉक प्राइस दोनों बहुत कम हो | जनरली penny stocks का मार्केट कैप < 50 crore rs से कम और स्टॉक प्राइस < 10rs से कम होता है |
ध्यान दें – Penny stock में हाई रिस्क के साथ हाई रिटर्न देने की क्षमता होती हैं। पर बिना फंडामेंटल एनालिसिस किए | सिर्फ मार्केट कैप और स्टॉक प्राइस को देख कर हमें penny stocks में इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए |
41) Pledged Share
जब प्रमोटर्स को कंपनी के ग्रोथ के लिए पैसो की जरुरत होती हैं | तो वे शेयरों को बैंकों के पास पैसो के लिए गिरवी रख सकते है, और इसके बदले उधार ले सकता हैं।
ध्यान दें – Pledged को Promoter Pledging भी कहते हैं |
42) Portfolio
पोर्टफोलियो आपके द्वारा ख़रीदे गए अलग-अलग शेयर्स, म्यूच्यूअल फण्ड या दूसरे इंस्ट्रूमेंट जैसे की बॉन्ड्स, डिबेंचर आदि का एक कलेक्शन होता हैं। पोर्टफोलियो में सिर्फ शेयर्स भी हो सकते हैं या दूसरे फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट भी शामिल हो सकते हैं।
43) Price Band
जब कोई स्टॉक अपने upper circuit से lower circuit के बीच में ट्रेड करता है | तो हम उसे प्राइस बैंड कहते हैं | जैसे कोई स्टॉक आज ₹50 से ₹75 के बीच में है | यहां ₹75 upper circuit और ₹50 lower circuit है |
44) Promoter Holding
Promoter Holding का मतलब होता है, कि एक कंपनी में उसके फाउंडर्स की कितने परसेंट की हिस्सेदारी है |
ध्यान दें – प्रमोटर्स होल्डिंग कम-से-कम 50% होनी चाहिए | और साल-दर-साल बढ़े तो और अच्छा माना जाता है |
45) Rally
Rally का मतलब किसी भी शेयर में तेजी होना | या शेयर का प्राइस आगे बढ़ना |
46) Revenue
एक फिक्स टाइम में एक कंपनी जितने अमाउंट के product & services को सेल करती है | उसे हम उस कंपनी के फिक्स टाइम का रेवेन्यू कहते हैं |
ध्यान दें – रेवेन्यू को दूसरे नामों से भी जाना जाता है जैसे – Total Sales / Sales और Turnover
47) Reverse Stock Split
Reverse Stock Split कभी-कभी कंपनी reverse stock split भी करती है | यानी अपने no. of shares को मार्केट में कम करती है और अपने शेयर प्राइस को बढ़ाती है |
ध्यान दें – Reverse Stock Split Stock Split से ठीक उल्टा होता है |
यानी जब एक कंपनी को लगता है कि उसकी शेयर प्राइस बहुत कम हो गई है या अपनी तरह के कंपनी से शेयर प्राइस बहुत कम हो गई है | तो ऐसे में कंपनी reverse stock split से मार्केट में अपने शेयर को कम करती है और शेयर प्राइस को reverse stock split के रेश्यो में बढ़ाती है |
ध्यान देने वाली बात यह है कि यहां भी हमारे इन्वेस्टमेंट की वैल्यू पर कोई फर्क नहीं पड़ता |
उदाहरण के लिए | मान लीजिए – एक XYZ नाम की कंपनी हैं | जिसने अलग-अलग समय पर 1:2 और 1:5 का Reverse Stock Split किया था | जैसा हम table में देख सकते है |
Reverse Stock Split | Before Reverse Stock Split Face Value | Before Reverse Stock Split Total no. of Shares | Before Reverse Stock Split Share Price | Total Investments | After Reverse Stock Split Face Value | After Reverse Stock Split Total no. of Shares | After Reverse Stock Split Share Price | Total Investments |
1:2 | ₹10 | 100 | ₹500 | ₹50,000 | ₹20 | 50 | ₹1,000 | ₹50,000 |
1:5 | ₹10 | 100 | ₹500 | ₹50,000 | ₹50 | 20 | ₹2,500 | ₹50,000 |
48) Right Issue
कंपनी right issue का काम फंड जुटाने के लिए करती है | इसमें पुराने शेरहोल्डर्स को कम कीमत पर शेयर बेचे जाते हैं | Right Issue का मतलब होता है कि कंपनी कुछ नया काम करने जा रही है | इससे शेयर में भी तेजी आती है |
49) Settlement Cycle
Settlement Cycle ट्रेड के सेटल होने में जो समय लगता है | उस समय को सेट्लमेंट साइकिल कहते हैं। इक्विटी के लिए यह अलग होता है और F&O के लिए यह अलग होता है।
इक्विटी सेगमेंट के लिए सेटलमेंट साइकिल –
इक्विटी के लिए सेटलमेंट साइकिल T+2 दिन होता है। लेकिन 2021 में, SEBI ने इसे धीरे-धीरे करने का सोचा और T+1 रोलिंग सेटलमेंट ( PDF ) कि शुरुआत की । 25 फरवरी 2022 से, 100 शेयर्स ( DOC ) के पहले सेट को T+1 सेटलमेंट के लिए लिया जाएगा।
T2 सेटलमेंट के लिए उदाहरण –
खरीद के उदाहरण :
आप सोमवार (T day) को स्टॉक खरीदते हैं।
बुधवार (T+2 दिन) को स्टॉक आपके डीमैट अकाउंट में क्रेडिट कर दिए जाते हैं।
बेचने के उदाहरण :
आप सोमवार (T day) को स्टॉक बेचते हैं।
बुधवार (T+2) दिन को आपके ट्रेडिंग अकाउंट में कैश को क्रेडिट कर दिया जाता है, जिसके बाद आप इस फंड को निकाल सकते हैं।
T+1 सेटलमेंट के लिए उदाहरण –
खरीद के उदाहरण :
आप सोमवार (T day) को स्टॉक खरीदते हैं।
मंगलवार (T+1 दिन) को स्टॉक आपके डीमैट अकाउंट में क्रेडिट कर दिए जाते हैं।
बेचने के उदाहरण :
आप सोमवार (T day) को स्टॉक बेचते हैं।
मंगलवार (T+1 दिन) को आपके ट्रेडिंग अकाउंट में कैश को क्रेडिट कर दिया जाता है,जिसके बाद आप इस फंड को निकाल सकते हैं।
F&O सेगमेंट के लिए सेटलमेंट साइकिल T+1 दिन होता है।
उदाहरण के लिए :
आप सोमवार (T day) को लॉन्ग/शॉर्ट फ्यूचर्स या शॉर्ट पोज़ीशन को क्लोज़ या फिर इसमें प्रवेश करते हैं।
मार्क टू मार्केट (MTM) या प्रीमियम के रूप में फंड का कोई भी क्रेडिट ऑब्लिगेशन आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मंगलवार (T+1 दिन) को सेटल किया जाता है। आप सेटलमेंट के बाद फंड को निकाल सकते हैं। जो भी डेबिट ऑब्लिगेशन रहता है, वह उसी दिन सेटल हो जाता है। यानी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में T दिन पर सेटल हो जाता है |
50) SGX Nifty
SGX Nifty इंडिया के nifty50 इंडेक्स के ऊपर based फ्यूचर्स है | जिसकी ट्रेडिंग सिंगापुर के सिंगापुर एक्सचेंज पर होती है | SGX nifty फॉरेन इन्वेस्टर्स को इंडिया के nifty50 इंडेक्स के फ्यूचर में ट्रेडिंग करने का ऑप्शन देता है | इंडिया में nifty50 फ्यूचर की ट्रेडिंग दिन में 6 घंटे 15 मिनट होती है | यानी सुबह के 9:15 से शाम के 3:30 तक होती है | वही सिंगापुर में SGX nifty की ट्रेडिंग दिन में 16 घंटे यानी भारतीय समय के अनुसार सुबह 6:30 से रात 11:30 तक होती है | यानी कि SGX nifty इंडियन nifty50 से 2 घंटे 45 मिनट पहले ओपन हो जाता है | इस वजह से SGX nifty की ओपनिंग प्राइस मूवमेंट इंडियन मार्केट की होने वाली प्राइस मूवमेंट को पहले ही बता देता है | पर SGX nifty की volatility nifty50 से थोड़ी ज्यादा होती है, और बहुत सारे ट्रेडर्स SGX nifty को फॉलो करते हैं | ताकि इंडियन मार्केट ट्रेड का थोड़ा idea उन्हें पहले से मिल जाए |
51) Share Buyback
Share Buyback एक कॉरपोरेट एक्शन है | जिसमें कंपनी अपने शेयर्स खुद अपने शेरहोल्डर से बाय करती है और कंपनी शेयर बायबैक आमतौर पर तभी करती है | जब उन्हें लगता है कि उनके शेयर की प्राइस undervalued है |
कंपनी शेयर बायबैक दो तरीकों से कर सकती है |
Tender Offer Buyback | Open Market Buyback |
Tender Offer Buyback मैं एक कंपनी रिकॉर्ड डेट अनाउंस करती है और जिन इन्वेस्टर्स के पास उस रिकॉर्ड डेट पर कंपनी के शेयर डिमैट अकाउंट में होते हैं | वही इन्वेस्टर tender offer buyback में हिस्सा ले सकते हैं | इसलिए अगर हमें किसी कंपनी के tender offer buyback में हिस्सा लेना है | तो हमें उसके शेयर को रिकॉर्ड डेट से 3 दिन पहले तक बाय करना होगा | Generally कंपनी शेयर का buyback करंट मार्केट प्राइस से ज्यादा पर करती है | क्योंकि अगर कंपनी ऐसा नहीं करेगी तो कोई क्यों अपने शेयर उन्हें सेल करेगा | कंपनी टेंडर ऑफर बायबैक के लिए 10 market days का टाइम देती है और इस 10 दिन के टाइम पर शेरहोल्डर्स को अपने शेयर्स कंपनी को ऑफर करना होता है | टेंडर ऑफर बाय बैक के प्रोसेस के लिए हर ब्रोकर के पास अलग से एक प्लेटफार्म होता है और हम उसी प्लेटफार्म से ही अपने शेयर कंपनी को ऑफर कर सकते हैं | 10 दिन के buyback पीरियड खत्म होने के कुछ दिनों के बाद हमें ईमेल से यह कन्फर्मेशन आता है कि हमारे टोटल ऑफर किए शेयर्स में से कितने शेयर कंपनी ने accept किए हैं | | Open Market Buyback मैं कंपनी अपने शेयर्स नॉर्मल मार्केट hours में एक आम इन्वेस्टर की तरह एक्सचेंज से buy करती है | कंपनी backback अनाउंसमेंट में no. of shares और buyback प्राइस लिमिट को डिसाइड करती है और कंपनी को 6 महीने टाइम के अंदर अपने डिसाइड किए हुए no. of shares को buy करना होता है | |
Buyback के फायदे –
1) एक जब हम शेयर बायबैक में भाग लेते हैं |
i) तो शेयर प्राइस बढ़ जाएगी |
ii) और डिविडेंड भी बढ़ जाएगा |
2) दूसरा जब हम शेयर बायबैक में भाग नहीं लेते हैं |
i) तो हम अपने शेयर को ज्यादा दामों पर बेच सकते हैं |
52) Short Selling
Short Selling में पहले हम शेयर को सेल करते हैं और जब उसकी प्राइस कम हो जाती है | तो उसे बाय करके प्रॉफिट कमाते हैं |
ध्यान देने वाली बातें –
1) किसी शेयर की शॉर्ट सेलिंग तभी की जाती है | जब हमें लगता है कि उस शेयर की प्राइस बहुत जल्द नीचे जाने वाली है |
2) शॉर्ट सेलिंग जनरली इंट्राडे ट्रेडिंग और डेरिवेटिव में ही होती है | पर लॉन्ग-टर्म बेसिस पर शॉर्ट सेलिंग नहीं होती |
3) शॉर्ट सेलिंग में रिस्क ज्यादा होता है |
53) Spread
किसी शेयर की Bid Price और Ask Price के बीच के अंतर को स्प्रेड कहते हैं।
54) Square Off
Contract खत्म या sell करने के time को square off कहते है |
55) Stock Split
Stock Split एक corporate action है | जिसमें एक कंपनी अपने करंट शेयर को एक रेश्यो में डिवाइड करती है | जिसकी वजह से मार्केट में कंपनी के total no. of shares बढ़ जाते हैं और कंपनी के शेयर प्राइस और फेस वैल्यू उसी रेश्यो में कम हो जाती है | जिस रेश्यो में कंपनी के शेयर बढ़ते हैं |
उदाहरण के लिए | मान लीजिए – एक XYZ नाम की कंपनी हैं | जिसने अलग-अलग समय पर 1:2 और 1:5 का Stock Split किया था | जैसा हम table में देख सकते है |
कंपनी stock split क्यों करती है ?
जब कंपनी को लगता है | उसके शेयर की प्राइस बहुत बढ़ गई है या अपने तरह के कंपनी के शेयर प्राइस से बहुत ज्यादा हो गई है | तो ऐसे में कंपनी stock split करती है |
ध्यान देने वाली बात यह है कि यहां भी हमारे इन्वेस्टमेंट की वैल्यू पर कोई फर्क नहीं पड़ता |
Stock Split | Before Stock Split Face Value | Before Stock Split Total no. of Shares | Before Stock Split Share Price | Total Investments | After Stock Split Face Value | After Stock Split Total no. of Shares | After Stock Split Share Price | Total Investments |
1:2 | ₹10 | 100 | ₹500 | ₹50,000 | ₹5 | 200 | ₹250 | ₹50,000 |
1:5 | ₹10 | 100 | ₹500 | ₹50,000 | ₹2 | 500 | ₹100 | ₹50,000 |
56) Stop Loss
स्टॉप लॉस किसी शेयर का वह Price Point होता हैं, जहां पर कोई ट्रेडर या इन्वेस्टर अपना Loss Book करके शेयर से निकलने के लिए तैयार बैठे हो। शेयर मार्केट में नुकसान को कंट्रोल करने के लिए Stop Loss का इस्तेमाल किया जाता हैं।
57) Trend
Trend हमें मार्केट के मूड को जानने में हेल्प करता है | जैसा की अभी मार्केट downtrend में है, uptrend में है या फिर sideways trend में है |
Trend के types?
ट्रेंड के तीन type होते हैं –
1) Uptrend – जो ट्रेंड ऊपर की ओर जा रहा हो, उसे uptrend कहते हैं | जिसमें हर दूसरा वाला high अपने पहले high से ज्यादा होता है | साथ ही हर दूसरा low अपने पहले low से ज्यादा होता है |
2) Downtrend – जो ट्रेंड नीचे की ओर जा रहा हो, उसे downtrend कहते हैं | जिसमें हर दूसरा high अपने पहले high से कम होता है | साथ ही हर दूसरा low अपने पहले low से कम होता है |
3) Sideways trend – जब भी कोई स्टॉक अपने range या zone में ही move करता है | तो उसे sideways trend कहते हैं |
58) Value Investing
स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करने के वैसे तो बहुत से स्ट्रेटजी है | पर जिसने सबसे ज्यादा पैसे बनाए हैं | वह है – वैल्यू इन्वेस्टिंग |
According to Warren Buffett इन्वेस्टमेंट करने की सबसे सही स्ट्रेटजी वैल्यू इन्वेस्टिंग ही है |
वैल्यू इन्वेस्टिंग एक इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी है | जिसमें किसी स्टॉक को तब बाय किया जाता है | जब वह डिस्काउंट में मिल रहा हो और डिस्काउंट में मिलने वाले स्टॉक को अंडरवैल्यूड कहा जाता है | वैल्यू इन्वेस्टिंग की शुरुआत Benjamin Graham और David Dodd ने की थी |
वैल्यू इन्वेस्टिंग को समझने के लिए हमें उसकी 3 basic theories को समझना होगा |
1) प्राइस और वैल्यू दोनों अलग-अलग चीजें होती हैं |
वैल्यू इन्वेस्टिंग के हिसाब से हर कंपनी की एक वैल्यू होती है | जिसे Intrinsic वैल्यू कहा जाता है और एक कंपनी की Intrinsic वैल्यू उसकी फाइनेंशियल स्ट्रैंथ और फ्यूचर ग्रोथ पर डिपेंड करती है | वहीं हर कंपनी का स्टॉक प्राइस मार्केट पर डिपेंड करता है |
ध्यान दें – कंपनी के स्टॉक प्राइस अपने Intrinsic वैल्यू से कम, ज्यादा या बराबर हो सकते हैं |
2) शेयर मार्केट में उतार-चढ़ाव होना रिस्क नहीं बल्कि opportunity है |
वैल्यू इन्वेस्टिंग के according शेयर प्राइस के तेजी से चेंज होने की वजह से ही स्टॉक की प्राइस Intrinsic वैल्यू से कम हो जाती है | जिससे हमें अंडरवैल्यूड स्टॉक को बाय करने की opportunity मिलती है | तो इस तरह अंडरवैल्यूड स्टॉक को बाय करने पर रिस्क ज्यादा नहीं बल्कि कम होता है |
3) किसी भी स्टॉक की प्राइस अपने लॉन्ग-टर्म intrinsic वैल्यू को ही फॉलो करती है |
मतलब लॉन्ग-टर्म में एक स्टॉक की प्राइस अपने Intrinsic वैल्यू से ना ज्यादा रहती है, ना कम बल्कि हर स्टॉक की प्राइस अपने Intrinsic वैल्यू के ऊपर-नीचे मूव करती रहती है |
59) Volatility
Volatility का मतलब शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव की सीमा से हैं। ट्रेडिंग सेशन के दौरान high volatility स्टॉक में ज्यादा उतार-चढ़ाव को देखा जाता हैं। जबकि low volatility स्टॉक में कम उतार-चढ़ाव होता हैं।
60) Volume
Volume का मतलब होता है कि 1 दिन में एक कंपनी के कितने शेयर ट्रेड हुए हैं |
ध्यान दें – एक कंपनी का volume daily जितना ज्यादा होता है | उस कंपनी का शेयर ज्यादा एक्टिव और लिक्विड होता है |
See More – सीखे Fundamental Analysis करना |
जाने Technical Analysis क्या होता है?
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FAQ –
Ques – Stock Market Surveillance क्या होता है?
Ans – Stock Market Surveillance का मतलब है कि क्या मार्केट में सब कुछ सही तरीके से चल रहा है? कोई मैनिपुलेशन तो नहीं हो रही ? Surveillance दो तरह के होते है – ASM और GSM
Ques – Extrinsic value क्या होता है?
Ans – Intrinsic value का उल्टा ही Extrinsic value होता है |